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शेख सादी--मुंशी प्रेमचंद


अध्याय 7

गुलिस्तां

हम गुलिस्‍तां की कुछ कथाऍं देते हैं जिनसे पाठकों को भी सादी के लेखन कौशल का परिचय दे सकें।गुलिस्तां में आठ प्रकरण हैं। प्रत्येक प्रकरण में नीति और सदाचार के भिन्न-भिन्न सिध्दांतों का वर्णन किया गया है।
प्रथम प्रकरण में बादशाहों का आचार, व्यवहार, और राजनीति के उपदेश दिये गये हैं।
सादी ने राजाओं के लिए निम्नलिखित बातें बहुत आवश्यक और ध्‍यान देने योग्य बतलाई हैं
प्रजा पर कभी स्वयं अत्याचार न करे न अपने कर्मचारियों को करने दे।
किसी बात का अभिमान न करे और संसार के वैभव को नश्‍वर समझता रहे।
प्रजा के धन को अपने भोग-विलास में न उड़ाकर उन्हीं के आराम में खर्च करे।
गुलिस्तां की कथायें
मैं दमिशक में एक औलिया की कब्र पर बैठा हुआ था कि अरब देश का एक अत्याचारी बादशाह वहाँ पूजा करने आया। नमाज़ पढ़ने के पश्‍चात् वह मुझसे बोला कि मैं आजकल एक बलवान शत्रु के हाथों तंग आ गया हूं। आप मेरे लिए दुआ कीजिये। मैंने कहा कि शत्रु के पंजे से बचने के लिए सबसे अच्छा उपाय यह है कि अपनी दीन प्रजा पर दया कीजिये।
एक अत्याचारी बादशाह ने किसी साधु से पूछा कि मेरे लिए कौन-सी उपासना उत्‍तम है। उत्‍तर मिला कि तुम्हारे लिए दोपहर तक सोना सब उपासनाओं से उत्‍तम है। जिसमें उतनी देर तुम किसी को सता न सको।
एक दिन ख़लीफ़ा हारूं रशीद का एक शाहज़दा क्रोध से भरा हुआ अपने पिता के पास आकर बोला, मुझे अमुक सिपाही के लड़के ने गाली दी है। बादशाह ने मन्त्रिायों से पूछा क्या होना चाहिए। किसी ने कहा, उसे कैद कर दीजिये। कोई बोला, जान से मरवा डालिये। इस पर बादशाह ने शाहज़दे से कहा, बेटा, अच्छा तो यह है कि उसे क्षमा करो। यदि इतने उदार नहीं हो सकते हो तो उसे भी गाली दे लो।
एक साधु संसार से विरक्त होकर वन में रहने लगा। एक दिन राजा की सवारी उधर से निकली। साधु ने कुछ ध्‍यान न दिया। तब मंत्री ने जाकर उससे कहा, साधुजी, राजा तुम्हारे सामने से निकले और तुमने उनका कुछ सम्मान न किया। साधु ने कहा, भगवन, राजा से कहिए कि नमस्कार-प्रणाम की आशा उससे रक्खें जो उनसे कुछ चाहता हो। दूसरे राजा प्रजा की रक्षा के लिए है, न कि प्रजा राजा की बंदगी के लिए।
एक बार न्यायशील नौशेरवां जंगल में शिकार खेलने गया। वहाँ भोजन बनाने के लिए नमक की ज़रूरत हुई। नौकर को भेजा कि जाकर पास वाले गांव से नमक ले आ। लेकिन बिना दाम दिये मत लाना। नहीं गांव ही उजड़ जायगा। नौकर ने कहा, तनिक-सा नमक लेने से गांव कैसे उजड़ जायेगा? नौशेरवां ने उत्‍तर दिया अगर राजा प्रजा के बाग़ से एक सेब खा ले तो नौकर लोग उस वृक्ष की जड़ तक खोद खाते हैं।
एक बादशाह बीमार था। उसके जीवन की कोई आशा न थी। वैद्यों ने जवाब दे दिया था। इन्हीं दिनों एक सवार ने आकर उसे किसी किश्ले के जीतने का सुखसंवाद सुनाया। बादशाह ने लंबी सांस लेकर कहा, यह ख़बर मेरे लिए नहीं, मेरे उत्‍तराधिकारियों के लिए सुखदायक हो सकती है।
एक बादशाह किसी असाधय रोग से पीड़ित था। हकीमों ने बहुत कुछ यत्न किया, पर कोई असर न हुआ। अंत में उन्होंने बादशाह को मनुष्य का गुर्दा सेवन कराने का विचार किया। वह मनुष्य किस रूप-रंग का हो इसकी विवेचना भी कर दी। बहुत खोजने पर एक ज़मीनदार के पुत्र में यह सब गुण पाये गये। उसके माता-पिता रुपया लेकर लड़के का वध कराने पर राज़ी हो गये। काज़ी साहब ने भी व्यवस्था दे दी कि बादशाह की प्राणरक्षा के लिए यह हत्या न्याय विरुध्द नहीं है। अंत में जब जल्लाद उसे मारने खड़ा हुआ तो लड़का आकाश की ओर देखकर हंस पड़ा। बादशाह ने विस्मित होकर हंसी का कारण पूछा। लड़के ने कहा, मैं अपने भाग्य की विचित्रता पर हंसता हूं। माता-पिता के प्रेम, काज़ी के न्याय, और बादशाह के प्रजापालन, सबने मेरी रक्षा से हाथ खींच लिया, अब केवल ईश्‍वर ही मेरा सहायक है। बादशाह के हृदय में दया उत्पन्न हुई, बालक को गोद में ले लिया और बहुत-सा धन देकर विदा किया।
किसी बादशाह के पास एक परोपकारी मंत्री था। दैवयोग से एक बार बादशाह ने किसी बात पर नाराज़ होकर उसे जेलख़ाने भेज दिया। पर जेल में भी उसके कितने ही मित्र थे जो पहले की भांति ही उसका मान-सम्मान करते रहे। उधर एक दूसरे रईस को इस घटना की खबर मिली तो उसने मंत्री के नाम गुप्त रीति से पत्र लिखा कि जब वहाँ आपका इतना अनादर हो रहा है तो क्यों यह कष्ट झेल रहे हैं? यदि आप यहाँ चले आयें तो आपका यथोचित सम्मान किया जायगा और हम लोग इसे अपना धन्‍य भाग समझेंगे। मंत्री ने बहुत संक्षिप्त उत्‍तर लिख भेजा। इतने में किसी ने बादशाह से जाकर कहा, देखिये मंत्री जी इतने पर भी अपनी कुटिलता से बाज नहीं आते, अन्य देशीय रईसों से लिखा-पढ़ी कर रहे हैं। बादशाह ने गुप्तचर के पकड़े जाने का हुक्म दिया। पत्र देखा गया तो लिखा था, मैं इस आदर के लिए आपका बहुत अनुग्रहीत हूं, लेकिन जिस रियासत का वर्षों तक नमक खा चुका हूं उससे थोड़ी-सी ताड़ना के कारण विमुख नहीं हो सकता। आप मुझे क्षमा करें। बादशाह यह पत्र देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और मंत्री को कारागार से निकालकर फिर पुराने पद पर नियुक्त कर दिया और अपनी निर्दयता पर बहुत लज्जित हुआ।
एक पहलवान अपने एक शिष्य से विशेष प्रीति रखता था। उसने उसे एक पेंच के सिवाय अपने और सब पेंचों का अभ्यास करा दिया। इससे शिष्य को अहंकार हो गया। उसने बादशाह से जाकर कहा, मेरे गुरुजी अब केवल नाम के गुरु हैं। मल्लयुध्द में वह मेरा सामना नहीं कर सकते। बादशाह ने युवक का यह घमंड तोड़ने का निश्‍चय किया। एक दंगल कराने का हुक्म दिया जिसमें गुरु और शिष्य अपना-अपना पराक्रम दिखायें। सहस्रों मनुष्य एकत्र हुए। कुश्ती होने लगी। शिष्य ने गुरुजी के सब पेंच काट दिये, पर अन्तिम पेंच की काट न जानता था, परास्त हो गया। बादशाह ने गुरु को इनाम दिया और युवक को बहुत धिक्कारा कि इसी बल-बूते पर तू इतनी डींग मारता था। शिष्य ने कहा, दीन बंधु, गुरुजी ने यह पेंच मुझसे छिपा रखा था। गुरुजी ने कहा, हाँ, इसी दिन के लिए छिपाया था। क्योंकि चतुर मनुष्यों की कहावत है कि मित्र को इतना सबल न बना देना चाहिये कि वह शत्रु होकर हानि पहुंचा सके।
दूसरा प्रकरण : सादी ने पाखंडी साधुओं, मौलवियों और फ़कीरों को शिक्षा दी है, जिन्हें उस प्राचीन काल में भी इसकी कुछ कम आवश्यकता न थी। सादी को पंडितों, मौलवी-मुल्लाओं के साथ रहने के बहुत अवसर मिले थे। अतएव वह उनके रंग-ढंग को भली-भांति जानते थे। इन उपदेशों में बार-बार समझाया है कि मौलवियों को संतोष रखना चाहिए। उन्हें राजा रईसों की खुशामद करने की जरूरत नहीं। गेरुवे बाने की आड़ में स्वार्थ सिध्दि को वह अत्यंत घृणा की दृष्टि से देखते थे। उनके कथनानुसार किसी बने हुए साधु से भोग-विलास में फंसा हुआ मनुष्य अच्छा है, क्योंकि वह किसी को धोखा तो देना नहीं चाहता।
मुझे याद है कि एक बार जब मैं बाल्यावस्था में सारी रात कुरान पढ़ता रहा तो कई आदमी मेरे पास खर्राटे ले रहे थे। मैंने अपने पूज्य पिता से कहा, इन सोने वालों को देखिये, नमाज़ पढ़ना तो दूर रहा कोई सिर भी नहीं उठाता। पिताजी ने उत्‍तर दिया, बेटा, तू भी सो जाता तो अच्छा था क्योंकि इस छिद्रान्वेषण से तो बच जाता।
किसी देश में एक भिक्षुक ने बहुत-सा धन जमा कर रक्खा था। वहाँ के बादशाह ने उसे बुलाकर कहा, सुना है तुम्हारे पास बड़ी सम्पत्ति है। मुझे आजकल धन की बड़ी आवश्यकता है। यदि उसमें से कुछ दे दो तो कोष में रुपये आते ही मैं तुम्हें चुका दूंगा। फ़कीर ने कहा, जहाँपनाह, मुझ जैसे भिखारी का धन आपके काम का नहीं है क्योंकि मैंने मांग-मांगकर कौड़ी-कौड़ी बटोरी है। बादशाह ने कहा, इसकी कुछ चिंता नहीं, मैं यह रुपये काफिरों, अधार्मियों को ही दूंगा। जैसा धन है वैसा ही उपयोग होगा।
एक वृध्द पुरुष ने एक युवती कन्या से विवाह किया। जिस कमरे में उसके साथ रहता उसे फूलों से खूब सजाता। उसके साथ एकांत में बैठा हुआ उसकी सुंदरता का आनंद उठाया करता। रात भर जाग-जागकर मनोहर कहानियाँ कहा करता कि कदाचित उसके हृदय में कुछ प्रेम उत्पन्न हो जाय। एक दिन उससे बोला, तेरा नसीब अच्छा था कि तेरा विवाह मेरे जैसे बूढ़े से हुआ जिसने बहुत ज़माना देखा है, सुख-दु:ख का बहुत अनुभव कर चुका है। जो मित्र धर्म का पालन करना जानता है; जो मृदुभाषी, प्रसन्नचित्‍त और शीलवान है। तू किसी अभिमानी युवक के पाले पड़ी होती, जो रात-दिन सैर-सपाटे किया करता, अपने ही बनाव सिंगार में भूला रहता, नित्य नये प्रेम की खोज में रहता, तो तुझसे रोते भी न बनता। युवक लोग सुन्दर और रसिक होते हैं किन्तु प्रीतिपालन करना नहीं जानते। बूढ़े ने समझा कि इस भाषण ने कामिनी को मोहित कर लिया, लेकिन अकस्मात युवती ने एक गहरी सांस ली और बोली आपने बहुत ही अच्छी बातें कहीं, लेकिन उनमें से एक भी इतनी नहीं जंचती जितना मेरे दाई का यह वाक्य कि युवती को तीर का घाव उतना दुखदायी नहीं होता जितना वृध्द मनुष्य का सहवास।
मैं दयारे बक्र में एक वृध्द धनवान मनुष्य का अतिथि था। उसके एक रूपवान पुत्र था। एक दिन उसने कहा, इस लड़के के सिवा मेरे और कोई संतान नहीं हुई। यहाँ से पास ही एक पवित्र वृक्ष है, लोग वहाँ जाकर मन्नतें मानते हैं। कितने दिनों तक रात-रात भर मैंने उस वृक्ष के नीचे ईश्वर से विनती की, तब मुझे यह पुत्र प्राप्त हुआ। उधर लड़का धीरे-धीरे मित्रों से कह रहा था, यदि मुझे उस वृक्ष का पता होता तो जाकर ईश्‍वर से पिता की मृत्यु के लिए विनय करता।
मेरे मित्रों में एक युवक बड़ा प्रसन्नचित्‍त, हंसमुख और रसिक था। शोक उसके हृदय में घुसने भी न पाता था। बहुत दिनों के बाद जब भेंट हुई तो देखा कि उसके घर में स्‍त्री और बच्चे हैं। साथ ही न वह पहले की सी मनोरंजकता है न उत्साह। पूछा, क्या हाल है? बोला, जब बच्चों का बाप हो गया तो बच्चों का खिलाड़ीपन कहाँ से लाऊं? अवस्थानुकूल ही सब बातें शोभा देती हैं।
किसी बादशाह ने एक ईश्‍वर भक्त से पूछा कि कभी आप मुझे भी तो याद करते होंगे। भक्त ने कहा, हाँ, जब ईश्‍वर को भूल जाता हूं तो आप याद आ जाते हैं।
एक बादशाह ने किसी विपत्ति के अवसर पर निश्‍चय किया कि यदि यह विपत्ति टल जाय तो इतना धन साधु-संतों को दान कर दूंगा। जब उसकी कामना पूरी हो गयी तो उसने अपने नौकर को रुपयों की एक थैली साधुओं को बांटने के लिए दी। वह नौकर चतुर था। संध्‍या को वह थैली ज्यों की त्यों दर्बार में वापस लाया, बोला दीनबन्‍धु, मैंने बहुत खोज की किन्तु इन रुपयों का लेने वाला कोई न मिला। बादशाह ने कहा, तुम भी विचित्र आदमी हो, इसी शहर में चार सौ से अधिक साधु होंगे। नौकर ने विनय की, भगवन, जो संत हैं वह तो इस द्रव्य को छूते नहीं और जो मायासक्त हैं उन्हें मैंने दिया नहीं।
किसी महात्मा से पूछा गया कि दान ग्रहण करना आप उचित समझते हैं या अनुचित? उन्होंने उत्‍तर दिया, उससे किसी सुकार्य की पूर्ति हो तब तो उचित है और केवल संग्रह और व्यापार के निमित्‍त अत्यंत अनुचित है।
एक साधु किसी राजा का अतिथि हुआ था। जब भोजन का समय आया तो उसने बहुत अल्प भोजन किया। लेकिन जब नमाज़ का वक्श्त आया तो उसने खूब लंबी नमाज़ पढ़ी। जिसमें राजा के मन में श्रध्दा उत्पन्न हो। वहाँ से विदा होकर घर पर आये तो भूख के मारे बुरा हाल था। आते ही भोजन मांगा। पुत्र ने कहा, पिताजी क्या राजा ने भोजन नहीं दिया। बोले, भोजन तो दिया, किन्तु मैंने स्वयं जान बूझकर कुछ नहीं खाया जिसमें बादशाह को मेरे योगसाधना पर पूरा विश्‍वास हो जाय। बेटे ने कहा, तो भोजन करके नमाज़ भी फिर से पढ़िये। जिस तरह वहाँ का भोजन आपका पेट नहीं भर सका, वैसे ही वहाँ की नमाज़ भी सिध्द नहीं हुई।
तीसरा प्रकरण : संतोष की महिमा वर्णन की गयी है। सादी की नीति शिक्षा में संतोष का पद बहुत ऊंचा है। और यथार्थ भी यही है। संतोष सदाचार का मूलमंत्र है। संतोष रूपी नौका पर बैठकर हम इस भवसागर को निर्विघ्न पार कर सकते हैं।
मिश्र देश में एक धनवान मनुष्य के दो पुत्र थे। एक ने विद्या पढ़ी, दूसरे ने धन संचय किया। एक पंडित हुआ, और दूसरा मिश्र का प्रधान मंत्री कोषाध्‍यक्ष। इसने अपने विद्वान भ्राता से कहा, देखो मैं राजपद पर पहुंचा और तुम ज्यों के त्यों रह गये। उसने उत्‍तर दिया ईश्‍वर ने मुझ पर विशेष कृपा की है, क्योंकि मुझको विद्या दी जो देव दुर्लभ पदार्थ है और तुमको मिश्र की उस गद्दी का मंत्री बनाया जो फिरऊन (मिश्र का एक अभिमानी बादशाह जिसे मूसा नबी ने नील नदी में डुबा दिया) की थी।
ईरान के बादशाह बहमन के संबंध में कहा जाता है कि उसने अरब के एक हकीम से पूछा कि नित्य कितना भोजन करना चाहिए। हकीम ने उत्‍तर दिया, 29 तोले। बादशाह बोला, भला, इतने से क्या होगा। उत्‍तर मिला, इतने आहार से तुम जिन्दा रह सकते हो। इसके उपरान्त जो कुछ खाते हो वह बोझ है जो तुम व्यर्थ अपने ऊपर लादते हो।
एक मनुष्य पर किसी बनिये के कुछ रुपये चढ़ गये थे। वह उससे प्रतिदिन मांगा करता और कड़ी-कड़ी बातें कहता। बेचारा सुन-सुनकर दु:खी होता था, सहने के सिवा कोई दूसरा उपाय न था। एक चतुर ने यह कौतुक देखकर कहा इच्छाओं का टालना इतना कठिन नहीं है जितना बनियों का। कसाइयों के तकाजे सहने की अपेक्षा मांस की अभिलाषा में मर जाना कहीं अच्छा है।

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1 Comments

Gunjan Kamal

30-Mar-2022 12:31 PM

Nice part 👌

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